आर्य और काली छड़ी का रहस्य-6
अध्याय-2
चार रहस्यमई और खतरनाक जगह
भाग-2
★★★
चार खतरनाक जगहों का बखान सुनाने के बाद हिना आर्य को नीचे ले आई थी। “अब मैं तुम्हें आश्रम की कुछ ऐसी जगह के बारे में बता देती हूं जो रोजमर्रा की जिंदगी में तुम्हारे काम आएगी। तुम आश्रम के ज्यादातर लोगों को इन्हीं कुछ जगहों पर पाओगे। हां..” वह बीच में खुद को झटका दे कर रोकते हुए बोली “इनमें आश्रम के गुरु और अचार्य नहीं आते। यह जगह सिर्फ हम जैसे छोटी उम्र के विद्यार्थियों के लिए हैं।” आर्य उसकी इस तरह से रुकने वाली अदा को नजरअंदाज नहीं कर पाया। लेकिन उसने तुरंत ही अपना ध्यान कहीं और कर लिया।
हिना ने तेज सांस बाहर छोड़ी और अपने एक हाथ की उंगली को नाक से रगड़ते हुए वापस उसके हाथ को पकड़ लिया। वह अब उसे फिर से कहीं लेकर जा रही थी। जल्द ही हिना ने आर्य को एक बरामदे की तरह बना हुआ कमरा दिखाया। “यह हमारे यहां का भोजनालय है। यहां दिन में हम सब दो बार खाना खाते हैं। एक बार दोपहर को और एक बार रात को। दोपहर का खाना 2:00 बजे होता है और रात का खाना 9:00 बजे।”
आर्य ने भोजनालय को ऊपरी नजरों से देखा। वहां छोटे-छोटे बेंच बने हुए थे जिनके पीछे पलाथी मारते हुए बैठ कर खाना खाना पड़ता था।
वह जगह दिखाने के बाद हिना आर्य को दूसरी ओर ले गई। वह जगह किताबों की अलमारियों से भरी जगह थी। हिना उस जगह को दिखाते हुए बोली “यह हमारे आश्रम का पुस्तकालय है। यहां दुनिया भर की तमाम किताबें मिल जाएगी। हर एक देश के इतिहास के साथ साथ यहां शैतानों का इतिहास और हमारे आश्रम का इतिहास भी मौजूद है।”
इसके बाद हिना ने आर्य को कई सारी और जगह भी दिखाई। उसने आर्य को आश्रम में बनी लड़कियों के रहने वाली जगह, फिर आचार्यों के रहने वाली जगह, इसके बाद गुरुओं और लड़कों के रहने वाली जगह दिखाई। सभी जगह आश्रम के अलग-अलग हिस्सों में बनी हुई थी। लड़के और लड़कियों की बस्ती एक-दूसरे के आमने-सामने थी, जिनके बीच में लकड़ी की बनी बाड़ और एक छोटा रास्ता उन्हें एक-दूसरे से अलग करता था। वही आचार्यों की जगह इन दोनों ही बस्तियों से पीछे थी और गुरु उनके ठीक बगल में ही बनी झोपड़ियों में रहते थे।
इतनी सारी जगहों को दिखाने के बाद हिना आखिर में आर्य को लड़कों की बस्ती में ले आई, वहां उसने एक झोपड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा “मुझे नहीं लगता मैं आज तुम्हें कुछ और दिखा पाऊंगी। इतना चलने फिरने के बाद मेरा शरीर जवाब दे रहा है, अब यह आखिरी और तुम्हारे रहने की जगह है। दोपहर का खाना हो चुका है, लेकिन तुम्हें यहां कमरे में खाना मिल जाएगा, जबकि रात के खाने के लिए मैं तुम्हें ठीक 9:00 बजे से कुछ देर पहले लेने आ जाऊंगी। तब तक तुम इस कमरे में आराम करो..” हिना ने कमरे के अंदर झांका तो देखा वह पूरी तरह से जालों से भरा हुआ था। उसने दांतो तले अपनी जीभ दबा ली “लेकिन मेरे ख्याल से आराम करने से पहले तुम्हें इस जगह को साफ करना होगा। तो पहले तुम इसे साफ करना, इसके बाद आराम करना।”
हिना ने दरवाजा से एक तरफ होते हुए अपनी दोनों बांहों को अंदर की ओर करते हुए आर्य के लिए रास्ता छोड़ दिया। आर्य ने हिना को आज इतना कुछ दिखाने के लिए धन्यवाद कहा। धन्यवाद सुनने के बाद हिना मुस्कुरा कर वहां से चली गई।
हिना के जाने के बाद आर्य ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और ठीक से कमरे को देखा। कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था, मगर इतना बड़ा जरूर था कि वहां एक बेड आने के बाद भी काफी सारी खाली जगह बच सके। कमरे के एक तरफ चारपाई थी जो धूल से भरी हुई थी। ठीक उसके बगल में लकड़ी के स्टैंड पर पानी का छोटा घड़ा पड़ा था। दीवारों पर कुछ किले थी जिन पर फिलहाल कुछ भी नहीं था। कमरे में दीवार के अंदर बनी एक अलमारी भी थी जो उत्तर की तरफ पड़ती थी। यह अलमारी भी पूरी तरह से खाली पड़ी थी। आर्य ने दरवाजे की तरफ नजर मारी तो वहां कोने पर ही झाड़ू पड़ा था। उसने गहरी सांस ली और धीमे कदमों से चलते हुए झाड़ू को उठा लिया। झाड़ू को उठाते हुए उसने कहा “अगर यह मेरी नई जिंदगी है तो मैं इसे स्वीकार करुगां।”
उसने धीमे से अपनी आंखों को मुदां, उसके बाद वह हुआ जो वह अक्सर करता आ रहा है। उसने कमरे में तूफ़ान सा मचा दिया। उसकी तेज चलने वाली क्षमता कमरे की सफाई ऐसे कर रही थी, जैसे मानो वह नहीं बल्कि उसकी जगह हवा कमरे की सफाई कर रही है। सिर्फ 15 से 20 सेकेंड के अंदर अंदर ही उसने जालो से भरे पूरे कमरे की सफाई कर दी थी। कमरे की सफाई करने के बाद उसने राहत से भरी सांस बाहर छोड़ी और वहां मौजूद चारपाई पर बैठ गया।
चारपाई पर बैठने के बाद उसे कब नींद आई उसे भी पता नहीं चला। जब उसकी आंख खुली तो कोई उसके कमरे के दरवाजे को जोर जोर से खटखटा रहा था। आर्य अपनी आंखें मसलते हुए उठा और दरवाजा खोला। उसके ठीक सामने हिना खड़ी थी।
हिना अपनी कमर पर हाथ रखकर झुझलाते हुए बोली “तुम नशा करके सोते हो क्या....।”
“क्या..” आर्य आधी नींद में डुबे शब्द में बोला।
“मैं पिछले 10 मिनट से यह दरवाजा खटखटा रही हूं, और तुमने अब खोला। तो मैंने पूछा कि तुम नशा करके सोते हो क्या, देखो अगर ऐसा है तो मैं तुम्हें बता देती हूं यहां आश्रम में नशा सख्त मना है”
आर्य ने उसे अजीब नजरों से घूरते हुए जवाब दिया “मैं नशा नहीं करता। थका हुआ था तो गहरी नींद आ गई, और मुझे पता नहीं चला तुम दरवाजे पर खड़ी हो। लेकिन तुम...”
“मैं.. मैं क्या..” हिना ने सवालिया अंदाज में कहा।
“तुम यहां किसलिए..” आर्य ने अपनी बात पूरी की।
हिना के हाथ में एक छोटी नीले फीते वाली घड़ी थी। उसने खड़ी आर्य के सामने की ओर बोली “मैंने कहा था ना मैं तुम्हें 9:00 बजे से पहले लेने आ जाऊंगी। अभी ठीक 8:56 हुए हैं तो मैं तुम्हें यहां लेने आई हूं।”
गहरी नींद में आर्य को इस बात का भी ख्यालात नहीं रहा कि वह कितनी देर तक सोया। उसकी नींद ठीक खाने के समय से पहले खुली।“समझ गया...” आर्य ने कहां और अंदर पानी के रखे मटके की तरफ गया। मटके का ढक्कन खोला तो वह खाली था।
हिना ने यह देख लिया। वह बोली “आओ मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें बता देती हूं मुंह धोने के लिए पानी कहां मिलेगा। और आगे से कमरे में रखा मटका भरना हो, तब भी तुम वहीं से पानी लेना।”
आर्य ने मटका बंद किया और हिना के पीछे पीछे चल पड़ा। हिना उसे एक सरोवर के पास ले आई थी। उस सरोवर में मौजूद पानी से भाप निकल रही थी। आर्य ने निकलती भाप को देखा तो कहा “क्या यह पानी गर्म है.... क्योंकि इसके अंदर से भाप निकल रही है..”
“इतने समझदार हो तो पूछ क्यों रहे हो...” उसने आर्य के चेहरे की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली “हां यह पानी गर्म ही है।”
“क्या... गरम पानी” आर्य ने हैरानी से सरोवर के इर्द-गिर्द देखा। उसे वहां कोई भी ऐसी युक्ति नहीं दिख रही थी जिससे पानी को गर्म किया जा सके। “लेकिन यह पानी गर्म कैसे हैं? मुझे यहां ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा जिससे पानी को गर्म किया जा सके।”
हिना ने चलते चलते अपने कदमों को रोक लिया। उसने अपनी नजर आर्य की और घुमाई और भोहें तानी “तुम्हें पता है ना यहां आश्रम में जादू जैसी चीजें होती है। सुबह बताते वक्त भी मैंने इसका नाम लिया था।”
आर्य हिना की बात का मतलब समझ गया। दोनों ही वापस चलने लगे। आर्य ने चलते हुए पुछा “तो यह पानी जादू से गर्म होता है। इसके अलावा यहां और क्या क्या जादू से होता है...”
“जो संभव है वह।”
“लेकिन जादू से तो कुछ भी किया जा सकता है ना। मैंने सुना है जादू से इंसानों को जानवर भी बनाया जा सकता है।”
हिना यह सुन कर हंसने लगी “इस तरह के जादू शायद होते होंगे, मगर यहां हमारे आश्रम में छात्राओं के बीच इस तरह के जादू नहीं है। यहां के जो बड़े अचार्य हैं वही ऐसे जादू की कलाए रखते हैं।”
“तो छात्राओं के बीच किस तरह के जादू है...”
“ऐसे जादू जो लड़ने में काम आए। या फिर अपनी सुरक्षा करने में। हमें ऐसे जादू सिखाए जाते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सिर्फ और सिर्फ अंधेरी परछाइयों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा सके।”
“तुम्हारे कहने का तात्पर्य यहां आश्रम में हम जो भी करते वह सिर्फ और सिर्फ अंधेरी परछाइयों के लिए हैं। उन्हें रोकने के लिए या फिर उनसे लड़ने के लिए।”
“हां...” दोनों ही सरोवर के पास बनी सीढ़ियों तक पहुंच चुके थे। हिना वहीं रुक गई जबकि आर्य सीढिओ पर दो कदम नीचे उतर गया। “हां....यहां आश्रम के लोगों का सिर्फ एक ही उद्देश्य है। शैतानों को उसके मकसद में कामयाब ना होने देना। तुम नहीं जानते इन शैतानों का जो मकसद है, जिनमें वह अपने शहंशाह को यहां दुनिया में लाना चाहते हैं, वह कितना खतरनाक है। अगर उनके शहंशाह दुनिया में आ गए तो सब तरफ सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज का राज होगा। और वह है अंधेरा। यहां शैतानों की हुकूमत हो जाएगी। फिर ना लोकतंत्र रहेगा, ना राज तंत्र, और ना ही हम जैसे लोग। शैतानों और इस दुनिया के रास्ते के बीच में अगर कोई खड़ा है, तो वह यह आश्रम ही है। हम जी जान लगा देंगे मगर अंधेरे के इस मकसद को कभी पूरा नहीं होने देंगे।”
आर्य ने सरोवर के गर्म पानी के छींटे अपने मुंह पर मारे। हिना की बातें उस पर गहरा असर कर रही थी।
आर्य अपना मुंह धो कर खड़ा हुआ तो उसे अपने आसपास मुंह साफ करने के लिए कोई चीज नहीं मिली। वह अपने कपड़ों से ही मुंह साफ करने की कोशिश करने लगा तो हिना ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और आगे बढ़ा दिया “तुम इसका इस्तेमाल कर सकते हो।” आर्य ने वह रूमाल लिया और मुंह साफ किया।
थोड़ी ही देर में वह वापिस चलते दिख रहे थे। आर्य ने चलते हुए पूछा “तुम यहां की खास हो क्या .... मतलब आचार्य वर्धन ने तुम्हें मेरी जिम्मेदारी सौंपी। इसके पीछे कोई कारण है या फिर... या फिर यहां ऐसा ही किया जाता है। जो भी आता है उसकी जिम्मेदारी किसी न किसी को सौंप दी जाती है।”
“ऐसा बिल्कुल नहीं....” हिना अपनी आदत के हिसाब से आंखों को तरेरते हुए बोली “आश्रम में नए आने वाले सदस्यों को यहां रहन-सहन में डालने की जिम्मेदारी आश्रम में विद्यार्थियों के अध्यक्ष की होती है। साल में अलग-अलग महीनों के हिसाब से अलग-अलग अध्यक्ष होते हैं। एक अध्यक्ष कम से कम 3 महीने तक अध्यक्ष बना रहता है। अभी दिसंबर का महीना है, और मेरा अध्यक्ष वाला कार्यकाल शुरू हुआ है। तो दिसंबर जनवरी-फरवरी, 3 महीने सभी नए आने वाले सदस्यों को रहन-सहन में डालने की जिम्मेदारी मेरी ही होगी।”
“तो इस हिसाब से तुम्हें यहां आए हुए कितना टाइम हो गया.... क्योंकि तुम्हें पूरे आश्रम की जानकारी है... तो साल या 2 साल तो हुए होंगे।” आर्य अंदाजा सा लगा रहा था।
हिना ने ना में सर हिला दिया “बिल्कुल नहीं। ना तो मुझे यहां आए हुए 1 साल हुआ है, ना ही 2 साल, मैं यहां बस 6 महीने पहले ही आई थी।”
“6 महीने!!” आर्य ने अपने कंधे उचकाए “तुम तो इन 6 महीनों में काफी कुछ जान गई हो।”
हिना ने मुस्कुरा कर कहा “तुम्हें जब छह महिने होंगे, तब तुम भी काफी कुछ जान जाओगे। शायद मुझसे भी बेहतर।”
★★★
हिना और आर्य आश्रम में बने हुए भोजनालय तक पहुंच गए। वहां काफी भारी संख्या में विद्यार्थी बैठ कर खाना खा रहे थे। आर्य पहले ही यहां की व्यवस्था देख चुका था, यह लकड़ी के बेंच थे जिन पर रखकर खाना खाया जाता था। और बैठने के लिए पलाथी मारनी पड़ती थी। फिर इसके बाद खाना केले के पत्तों पर परोसा जाता था।
हिना आर्य से बोली “तुम्हारे यहां कोई दोस्त नहीं है, ऐसे में तुम मेरे साथ बैठकर खाना खा सकते हो। आओ...” वह उसे खाली जगह के पास ले गई। वहां दोनों ही टेबल के पास पलाथी मारकर बैठ गए। दो छात्राओं ने उनके सामने केले के पत्तों को रखा और फिर उस पर चावल डाल दिए।
हिना बोली “हमारे यहां आश्रम में हर दिन अलग-अलग तरह का खाना खाया जाता है। जो भी खाना जिस दिन बनता है वह दोपहर और शाम को एक जैसा रहता है। आज चावल बने हैं, जब कि कल रोटी सब्जी और इसके बाद अगले दिन जो लिस्ट होगी उसके हिसाब से खाना बनेगा। इसके अलावा तुम्हारा खुद का पसंदीदा खाना खाने का मन करें तो तुम यहां के रसोईघर में जाकर अलग से खाना बना भी सकते हो। मगर इतना ध्यान रखना, तुम्हें यहां पिजा या मेगी जैसी चीजें नहीं मिलेगी। पुराने जमाने में हम जो खाना खाते थे वहीं मिलेगा।”
आर्य मुस्कुराया “मुझे यह सब चीजें पसंद भी नहीं। हम लोगों ने अभी तक इसी तरह का खाना खाया है।”
हिना और आर्य दोनों ही अपने हाथों से चावल खाने लगे। चावल खाते खाते हिना ने पूछा “हम लोगों से तुम्हारा मतलब.. तुम कहां से थे... ”
“ मैं जगह के बारे में तो नहीं जानता क्योंकि मुझे कभी मेरे बाबा ने इसके बारे में बताया नहीं था। मगर हम लोग किसी शहर के जंगल में रहते थे। वहां बने एक घर में। मैं और सिर्फ मेरे बाबा।”
“तो यहां अंधेरी परछाइयों ने तुम पर हमला कर दिया होगा। उसमें तुम बच गए मगर तुम्हारे बाबा नहीं..” हिना आगे बोली “यहां के सभी लोगों की कहानी तुम्हें लगभग इसी तरह की मिलेगी। आश्रम के काफी सारे लोग दुनिया के अलग-अलग कोनों में रहते हैं, लेकिन जब अंधेरी परछाइयां उन पर हमला करती है तो वह सुरक्षा के तौर पर यहीं आते हैं।”
आर्य खाना खाते-खाते सोच में पड़ गया “लेकिन वह हमला करने से पहले ही क्यों नहीं आते.... उन्हें नहीं पता बाहर उन्हें खतरा है।”
“हां” हिना ने सर हिला दिया “दरअसल बात यही है कि उन्हें नहीं पता बाहर खतरा है। यही वजह है कि वह पता लगने से पहले आश्रम में नहीं आ पाते। उन्हें लगता है कि वह लोग बाहर सुरक्षित हैं और तब तक इस अंधविश्वास में ही रहते हैं जब तक वह असुरक्षित ना हो जाए।”
“तो आश्रम के लोग ही जाकर उन्हें यहां क्यों नहीं ले आते.... वह कुछ ऐसा क्यों नहीं करते जिनसे उन्हें पता चले कि बाहर खतरा है। और उन्हें खतरे से बचने के लिए यहां आश्रम में आना होगा।”
“इसके पीछे के कई कारण है।” हिना खाना भी खा रही थी और साथ में आर्य को जवाब भी दे रही थी। “एक तो हमें यह नहीं पता वह लोग कहां कहां हैं क्षऔर किस किस कोने में हैं। जिससे उन्हें ढूंढना मुश्किल हो जाता है। किसी तरह का कोई जादू भी उन्हें नहीं ढुंढ सकता। दूसरा यहां आश्रम के लोगों पर घेरे के बाहर काफी सारी अंधेरी परछाइयां नजर रखती है। हम चाहे किसी भी चीज का इस्तेमाल करके बाहर जाएं, भले ही जादू हो या किसी तरह का साधन, उन्हें पता लग जाता है। फिर वो हम जहां जाते हैं वहां हमें घेरते हैं, उनकी संख्या ज्यादा होती है तो हम हार जाते हैं। इन वजहों से ऐसा पॉसिबल नहीं हो पाता..”
आर्य खाना खाते-खाते गंभीर हो गया। “यह तो सच में एक बड़ी समस्या है। अंधेरी परछाइयों ने अपने मकसद में कामयाब होने के लिए पूरे आश्रम को चारों ही तरफ से घेर रखा है। उन्हें बस मौका चाहिए.. आश्रम की तरफ से किसी गलती का... और वह फायदा उठाने से नहीं चुकेंगे।”
“हां। इसीलिए तो आश्रम ने सुरक्षा चक्कर बनने के बाद कभी आमने सामने की लड़ाई नहीं की। हम यहां मुट्ठी भर हैं तो आमने सामने की लड़ाई में हमें ही नुकसान होने वाला है। नुकसान के बाद आश्रम या तो पूरी तरह से खत्म हो जाता, या कमजोर। और दोनों ही तरफ से उन्हें फायदा होने वाला था। इसलिए आश्रम के आचार्य ऐसा कभी नहीं करते। इसके विपरीत उन्होंने कठोर नियम बना रखे हैं, और यहां आश्रम में रहकर अपनी ताकत को बढ़ाने में लगे हुए हैं। किसी दिन अगर ताकत बढ़ कर उनके बराबर हो गई, तब शायद जरूर आमने सामने की लड़ाई लड़ी जाए।”
तकरीबन अगले 20 मिनट तक दोनों खाना खाते रहे। आज हिना और आर्य ने आपस में जो भी बात की उससे वह एक दूसरे के काफी नजदीक हो गए थे। कम से कम इतना नजदीक कि दोनों में दोस्तों जैसा व्यवहार तो होने ही लगा था। हिना कुछ हद तक आर्य को समझने लगी थी, वही आर्य कुछ हद तक हिना को।
दोनों ही खाना खाने के बाद बाहर आए और वहां भोजनालय के बाहर बनी हाथ धोने वाली व्यवस्था पर हाथ धोए। वहां हिना ने आर्य से कहा “खाना खाने के बाद टहलना सेहत के लिए बढ़िया रहता है। चलो आओ, मैं तुम्हें दीवार के ऊपर टहलने के लिए लेकर जाऊं। फिर वहां तुम्हें वह दृश्य भी दिखाती हूं जो मुझे यहां सबसे ज्यादा पसंद है।”
आर्य अब तक हिना की हर बात पर सहमति भरता आ रहा था तो उसने यहां भी सहमति भरी। दोनों ही आश्रम की दीवार की तरफ चल पड़े। वहां दीवार पर चढ़ने वाली सीढ़ियों के जरिए वह ऊपर गए।
इस समय गहरी रात थी मगर ढेर सारे तारों की चमक की वजह से गहरी रात भी कम गहरी प्रतीत हो रही थी। हिना ने आर्य का हाथ पकड़ लिया था, वह दोनों इस बार आश्रम के दाई और बनी दीवार से चढ़े थे, और वहां से पीछे जंगल वाली दीवार की ओर जा रहे थे। बीच में हिना ने ऊपर आसमान की तरफ देखा “आज पिछले कुछ दिनों की तुलना में सबसे ज्यादा तारे निकले हुए हैं। आज अमावस की रात है तो अंधेरी रात का यही फायदा है कि आसमान में ज्यादा तारे देखने को मिलते हैं।”
आगे जब वह दाई और की दीवार और पीछे वाली दीवार के मोड़ के पास आए तब हिना ने आर्य का हाथ छोड़ दिया और दौड़ कर कोने के पास चली गई। वहां उसने अपनी आंखें बंद की और दोनों हाथ फैला लिए। आर्य उसे यह सब करता हुआ देख रहा था, लेकिन लड़कियों के यह काम उसके पल्ले बिल्कुल भी नहीं पड़ रहे थे।
हिना वहां हाथ फैलाए बोली “यह है मेरा सबसे पसंदीदा दृश्य। तेज बहती ठंडी हवाओं के साथ सामने पहाड़ी के ऊपर बने तारों को देखना।” आर्य ने पहाड़ी की तरफ ध्यान दिया। ऊंची बर्फीली पहाड़ी के ऊपर बने तारे सच में दर्शनीय प्रतीत हो रहे थे। वह दृश्य ऐसे थे मानो जैसे पहाड़ी के ऊपर का काला आसमान उसके सर के बाल हो, जिसमें बीच-बीच में चमकते तारे दिख रहे हैं। आर्य ने कुछ देर तक पहाड़ी के ऊपर चमकते तारों को देखा और फिर अपना ध्यान आश्रम के पीछे मौजूद जंगल की तरफ कर दिया।
अंधेरे से भरा डरावना और खौफनाक जंगल। आर्य ने धीरे-धीरे अपने कदम उस और बढ़ाएं। वह जंगलों से आती कुछ डरावनी आवाजों को साफ़ सुन पा रहा था। भेड़ियों के रोने और कुछ जानवरों के चिंघाड़ने की आवाजें। आर्य 5 इंची दीवार के पास आते ही अपने हाथों को उस पर रख कर जंगल के दृश्य में खो सा गया। यहां इस तरफ के आसमान पर उसे तारे भी नहीं दिखाई दे रहे थे। जहां तक उसकी नजर जा रही थी उसे सिर्फ और सिर्फ काले खौफनाक पेड़ ही दिखाई दे रहे थे। ऐसे काले खौफनाक पेड़ जो जंगल में खड़े भी डरावनी परछाइयों की तरह लग रहे थे। अभी आर्य उन सब को देख ही रहा था कि उसे कुछ ऐसा दिखा जो उसे नहीं दिखना चाहिए था।
उसने हिना को आवाज लगाई “हिना जरा यहां तो आना। आकर देखो क्या यह मेरा वहम है या मैं सच में इसे देख रहा हूं।”
हिना ने अपनी बाहों को समेटा और आर्य की तरफ आ गई। वहां उसने अपनी आंखों को केंद्रित करते हुए जंगल की और देखा। उसने भी वही चीज देखी जो आर्य ने देखी थी। “ओह... नहीं.... यह तो...ऐसा...” उसके माथे पर अस्वाभाविक लकीरे आ गई “ऐसा कुछ बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।”
आर्य हिना की तरफ देखते हुए बोला “मगर ऐसा हो रहा है.....।”
★★★
Horror lover
18-Dec-2021 04:41 PM
Rochkta se bhari hui kahani h aapki...
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Seema Priyadarshini sahay
08-Dec-2021 08:49 PM
बहुत सुंदर, रोचकता भरी हुई कहानी
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